शुक्रवार, 25 अप्रैल 2008

पत्रकारिता पुरानी है अंदाज़ नया

पत्रकारिता पुरानी अंदाज नया साहब...
यहां हर अखबार की अपनी अलग कहानी है,
अंदाज बदलता रहता है, पत्रकारिता पुरानी है

हर पत्रकार अपने आप को बेहतर बताता है
चाहे पत्रकारिता का उसे क-ख न आता है
हमे तो कविता के आइने में, उसे सच्चाई दिखलानी है
अंदाज बदलता रहता है....

सीनियर्स ने मुझे डाली आदत शब्दों से खेलने की
जरूरत ही नहीं पड़ी कभी, जबरन कविता पेलने की
छोटे ये बात जान चुके है, बड़ों को समझानी है
अंदाज बदलता रहता है...

सभी तीस मारखां जानते हैं पत्रकारिता के असूल
नौकरी करते लाला जी की इन्हें क्यों जाते हैं भूल
भूलने की आदत इनके दिल से हमें भुलानी है
अंदाज बदलता रहता है...

दूसरो को नसीहत दें जरूर, पहले खुद के दिल में झांके
दूसरों से अपनी तुलना करें, न अपनी कीमत आंके
भाव में बहकर जो लिख दिया, वह शायद मेरी नादानी है
अंदाज बदलता रहता है, पत्रकारिता वही पुरानी है
-विजय जैन

2 टिप्‍पणियां:

VIVEK JHA ने कहा…

this poetery is very good at this time. weldone and good luck bichhu.

जेपी नारायण ने कहा…

बिच्छू को पढ़ते-पढ़ते....
संपादक की नाक पर लगा जोर का डंक।
आह-ऊह करने लगे लाला जी के संग।

(भाई आपका संदेश मिल गया है, लिखूंगा। धन्यवाद)